हिन्दू समाज बचाये गाय Indian news Hindi

प्रो योगेंद्र यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वराज इंडिया दिनांक ०५-०५-२०१७ को हिन्दुस्तान पत्रिका मे गाय के बारे में एक विशेष में लिखते हैं।

पहलु खान की आंधी मां अपने इकलौते बेटे को याद करके बिखल-बिखल कर रो रही थी। वहा सांत्वना के शब्द बेमानी थी, मेरा मन अस्सी साल पुरानी घटना को याद कर रहा था। जब शायद पहलु खान की मां पैदा हुई होंगी, सन१९३६ में हिसार में बकरीद पर गाय की बलि लेकर दंगा हुआ था। उस दंगे में मेरे दादाजी मास्टर राम सिंह का कत्ल हुआ था,पहलु खान की मां का हाथ पकड़े मेरे मन में फैज अहमद फैज की पत्तियां गुंज रही थी। खुन के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
मैं गौरक्षा समर्थक हुं, हमारे यहां बहुसंख्यक समाज गाय को पवित्र मानता है,वैदिक काल में भले ही गोमांस का उपभोग होता हो,लेकिन आज एक औसत हिन्दू का धार्मिक संस्कार उसे गोमांस खाने से रोकता है,मांस खाने वाले हिन्दू भी कुछ अपवाद छोड़ कर गाय का मांस खाने में परहेज करते हैं।

युं भी कोई धार्मिक संस्कारों की तरह गोरक्षा का विचार अपने आप में एक सुदंर विचार है, मानवीय संवेदना को केवल अपनी और मानव जाति की रक्षा की बजाय जीव मात्र की रक्षा से जोड़ना निस्संदेह एक श्रेष्ठ विचार है, ऐसे में अगर गाय इस आदर्श का प्रतीक बनती हैं, तो इससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ?
अगर हिन्दू धर्म उसे गो हत्या से रोकता है, तो मुसलमान का धर्म भी उसे गाय को मारने और खाने का निर्देश नहीं देता, कुरान शरीफ का दुसरे सुरा "गाय" से जुड़े किस्सों पर आधारित है, बेशक इस्लाम धर्म में गौ हत्या और गोमांस की पुरी मनाही नहीं है, लेकिन कुरान शरीफ़ का निर्देश प्रतिबंध कि दिशा में ही है- दुधारी गाय, खेती में प्रयोग की जाने वाली गाय, छोटे बछड़े और बूढ़ी गाय की बली देने में पाबंदी है, और चूंकि पैग़म्बर हजरत मुहम्मद (स.) ने गाय पाली थी,इसलिये गाय पालने को सुन्नत यानी मुसलमानों के लिए ध्रम्रोंपयुक्त काम माना गया है, और सच यह है कि पहलु खान जैसे गाँव में बसने वाले मुसलमान किसान सदियों से गौपालक रहे हैं, आज भी बाकी हरियाणा की तुलना में मुस्लिम बाहुल्य वाले मेवात जिले में गायें ज्यादा पाले जाते हैं।

यानी गोरक्षा के सवाल पर हिन्दू और मुसलमान को एक-दुसरे के खिलाफ खड़े होना जरुरी नहीं है, इसी समझ के आधार पर भारत के संविधान में गोरक्षा को नीति निर्देशक सिद्धांत बनाया गया, अगर ईमानदार कोशिश हो, तो गोरक्षा के पक्ष में एक राष्ट्रीय सहमति बन सकती है, लेकिन, हमें गाय की रक्षा करनी है या इस बहाने मुसलमान का शिकार करना हैं?

अगर हमारा असली उद्देश्य गौ रक्षा है, तो हमें एक कड़वे सच का सामना करना होगा। आज गाय को सबसे बड़ा खतरा उनके नहीं है, जो गोमांस खाते हैं, बल्कि उससे हैं,  जो गाय के फोटो की पूजा करते हैं। कड़वा सच यह है कि गाय के बारे में हिन्दू समाज का रवैया पाखंड से भरा हुआ है, कहने के लिए हिन्दू समाज गाय को माता कहते हैं, उसे तिलक लगाता है, और उसके नाम पर झगड़ा करता है, लेकिन, वही हिन्दू गाय को बचाने के लिए क्या रत्ती भर भी काम करता है ?भारत के हर शहर में हजारों गायें प्लास्टिक और कचरा खाते हुए देखी जा सकती है। पिछले साल सुखे के समय लाखों गायें गाँव के बाहर घास का दाना खोज रही थी,तड़प कर मर रही थी, मैंने उनकी दशा पर लेख लिखे, सबसे गुहार लगाई, लेकिन हिन्दू समाज उनकी रक्षा के लिए नहीं आया।

एक तरफ गौ रक्षा का शोर बढ़ रहा है, दुसरी तरफ गौशालाएं बंद हो रही हैं। यानी कि गाय को बचाने की पहली जिम्मेवारी जिस हिन्दूसकता गा।ज की है, वह गाय की इस दशा का पहला अपराधी है। दुसरा कड़वा सच यह है कि गौहत्या के लिए जिम्मेवार सिर्फ वह कसाई नहीं है, जो जानवर को काटता है, गौवध की पहली जिम्मेवारी उस गौ पालक की है, जो दूध सुख जाने के बाद गाय को बेच देता हैं, और बछड़े को छोड़ देता है। इस श्रृंखला में उसके बाद दलाल आता है, जो गाय को भुचड़खाना तक पहुंचता है। इस श्रृंखला के अंत में बड़े- बड़े स्लाटर हाउस आतें हैं, जो हजारों लाखों गाययों को काटकर उसका मांस निर्यात करते हैं। और इसका काम में ज्यादातर लोग हिन्दू ही है, तीसरा कड़वा सच ये है कि गौहत्या और गोमांस पर कानूनी प्रतिबंध लगाने से कुछ नहीं फायदा होगा, देश के अधिकतर राज्यों में गौ हत्या पर पाबंदी है, लेकिन गाय को पालने में किसान असमर्थ है, बूढ़ी गाय को बचता है।
गोरक्षा की व्यवस्था ठीक किये बिना गोमांस पर प्रतिबंध लगाने का मतलब होगा हर रसोई में पुलिस इंस्पेक्टर की घुसपैठ, तब एख्लाक जैसे कांड हर रोज होते रहेंगे, अगर गोरक्षा के व्यवस्था करने के बाद गौहत्या के विरुद्ध राष्ट्रीय सहमति बनाया जा सकता है। तो गैर हिन्दू भी इस बात को स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन, सबसे जरुरी हिन्दू समाज पहले अपनी जिम्मेवारी निभाये।

अगर गोरक्षा का संकल्प लेनेवाले की नीयत इस बहाने मुसलमान के शिकार करने का नहीं है, तो उन्हें सबसे पहले हिन्दू समाज के पाखंड का पर्दाफाश करना होगा। देश में २५ करोड़ हिन्दू परिवार है और कुल १२ करोड़ गाय, अगर गाय की पूजा करने वाले हर परिवार में एक- एक गाय पाल ले और दूध न देने पर भी उसकी सेवा करे, तो गोरक्षा अपने आप हो जायेगी, आज किसान इस स्थिति में नहीं है कि वह बछड़े और बूढ़ी गाय को पाल सके, जो गाय पाल नही सकता वह गौशाला के लिये चंदा दे, तो गाय बच सकती हैं, अगर सरकारें भी गौशाला को बचाने में योगदान दे, तो उससे आपत्ति नहीं होना चाहिए, लेकिन, मुख्य जिम्मेवारी समाज को ही उठानी चाहिए।
पहलु खान की मां गौ सेवा केलिए तैयार है, गोरक्षा के प्रयास में शहीद हुए मेरे दादाजी भी। जिम्मेवारी को स्वीकार कर लेते, लेकिन गाय को सिर्फ टीवी पर देखने वाले गोरक्षक इससे दुर भागेंगे।
यहाँ मैं योगेन्द्र यादवजी से कहना चाहुंगा कि कोई भी धर्म के विषय में जब लिखें तो उसके किताब का सही अध्ययन करना जरुरी है। मुहम्मद (स.) कभी गाय नेही पाले थे, न ही सऊदी अरब मक्का में किसी को गाय पालने कि आदतें थीं। मुहम्मद (स.) बचपन में बकरियाँ चरायें हैं। दुसरी बात रही गोमांस खाने की कुरान के दुसरे सुरा में जो गाय की बात कही उसमें गोमांस खाने का विषय नहीं है, वह विषय कुर्बानी की दर्शाया गया, वहाँ स्वस्थ और खुबसूरत जवान गाय बताया गया है, जो कह न बुढ़ी, न गर्भवती, न दुध देने वाली और न ही खेती में काम आने वाली हो, वे सिर्फ और सिर्फ कुर्बानी करने वाले विषय हैं। अब रहा गोमांस खाने की बातें यहाँ मरा हुआ छोड़ कर यानी मुर्दा जनवार को खाने में निषेध है। बाकी हर कोई हालत में उसे जबह कर खाने कि निर्देश है, लेकिन दूध पीने वाले बच्चे हो या गर्भवती हो जानते हुए निषेध है। बाकी रहा विचार गोरक्षक और हिन्दू की उस लेख पर सहमत हुं।

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