ये धर्म नही हो सकता जो अपनी रीति रिवाज यानी संस्कारों बनी हो

सब बड़ा धर्म रिवाज रीति, चाहे वें कु संस्कार क्यों न हो !

धर्म के विषय में देखा जाए तो भारत सबसे आगे बढ़ कर है, भारतवर्ष एक ऐसे देश है जहां हर धर्म को मानने वालों मिलेंगे। मगर धर्म से बड़कर यहाँ के रीति रिवाज है, हर धर्म में कोई न कोई संस्कार जुड़े हुए है, चाहे धर्म को माने या ना माने लेकिन रीति रिवाजों पर कोई किसी प्रकार के ठैंस ना पहुँचे।
जैसे हिन्दू धर्म में धार्मिक कल्पना के मुताबिक हर चीजों में भगवान बसा हुआ है, इन्सानों में पुरुषों में से कय भगवान पाया जाता है। रामायण, रामचंद्र, श्री कृष्ण इत्यादि। औरतों में सीता, दुर्गा, काली,लक्ष्मी यदि, यह छोड़ कर वस्तु में भी भगवान पाया जाते हैं जैसे पत्थर,चट्टान,नदी,नहर,गंगा इत्यादि। जंतु में भी भगवान पाया जाता है जैसे साँप, गाय,शेर इत्यादि, यानी सूर्य, चन्द्रमा, पानी पेड़ पौधे सब कुछ के पूजन पूजा किया जाता है। ये हुए धर्म, अब रहा रीति रिवाज बड़े का पैर छुना,सूर्य को प्रणाम करना, गोमुत्र सर पर चढ़ना, पूजन के लिये सामाग्री एकाट्ठा करना, सामाग्री में चावल, गेहूँ, बैर, घी, केला,दुध,फल फुल इत्यादि। ये धार्मिक संस्कार है, मगर ऐसे कौनसी रीति रिवाज है जो धर्म से भी बढ़कर हो सकते हैं, सोमवार को ये नहीं खाना चाहिए, मंगलवार को ये नहीं पहनने चाहिए, बुधवार को वहाँ नहीं जाना चाहिए, गुरुवार को वें नहीं करना चाहिएए
कोई मर जाए तो बाल मुड़वाना, कोई दलित को मंदिर नहीं जाने देना, शादी विवाह मे शुभ अशुभ समय निर्णय करना,छुत और अछूत भेदभाव रखना इत्यादि, मगर वे सब धर्म से बिल्कुल अलग है।
मुस्लिम धर्म में सबसे अधिक रीति रिवाजों में मुवात्ला पाया जाता है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय में अनेक प्रकार के मुसलमान हैं, जैसे के अहले हदीस, अहले सुन्नत, जमाअत ए तबलीग,बरेली, देवबन्द, शिया सुन्नी इत्यादि, कुल मिलाकर मुसलमान में ७३ फिर्का है, इनमें से एक फिर्का जो अहले हदीस है वें सिर्फ अल्लाह के सिवा किसी के आगे सर नहीं झुकाते हैं इनके प्रचार जाकिर नायक करते हैं। वें फिर्का भारतवर्ष में सिर्फ दश प्रतिशत होगी बाकी ९० प्रतिशत मुसलमान कुल मिलाकर वें फिर्का है।
इस्लाम धर्म में पांच इबादत के अंग होती है-
१. नमाज़
२. रोजा
३. ज़कात
४. हज
५. एक खुदा का इबादत करना और मुहम्मद (स.) को रसूल स्वीकार करना।
नमाज़, रोजा, ज़कात, हज को मानने वाले मुसलमानों में से सभी हैं, मगर अपने अपने रीति रिवाज को धर्म के मिला लेने वाले मुसलमान ९० प्रतिशत बन गयी है। एक मजहब ऐसा भी है जो अपने से कबर बनाकर इसको पूजा करते हैं, चादर चढाते है, प्रसाद चढ़ता है, बलि चढ़ाते हैं और सजदा करते है। एक मजहब ऐसा भी है जो मुहम्मद स. पर आरोप लगाकर कहता है कि पैग़म्बर अली रजी. को बनना था मगर गलती से मुहम्मद को बना दिया गया, एक मजहब ऐसा भी है जो जिन्दा इन्सान जिसे पीर बाबा कहता उनके के पैर पर सर को सजदा करता है।
भारतवर्ष में ७० प्रतिशत मुसलमान अपनी रीति रिवाज को धर्म बना लिया है। सनातन धर्म हिन्दू धर्म है मगर आज रीति रिवाज को मिलाकर कर सनातन धर्म का रुपरेखा बदल दिया गया, जैसे मुसलमान धर्म में आज दिखाई देती है। हिन्दू समाज रामनवमी पर्व में जुलूस निकालते तो उधर मुसलमान मरहम पर जुलूस निकालते है, जो कह मरहम इस्लामिक पर्व ही नहीं है, मरहम में रोजा रखकर मातम मनाने चाहिए।
अगर हिन्दू धर्म में मूर्ति को पूजते हैं, तो मुसलमान कबर और पीर का पुजा करते हैं, न सनातन धर्म मुर्ति को पुजने की निर्देश देती न इस्लाम धर्म कबर को पुजने का हुक्म देता है,  यहां दोनों धर्म रीति रिवाज का शिकार है।
आज मंदिर धर्म गुरुओं के लिए दुकान बन गयी, जैसे मज़र पीर बाबा के लिए व्यवसाय।
हरा रंग की परिधान मुसलमान समुदाय ने चुना, तो हिन्दू का रंग भगवा, जो कि मुसलमान कि परिधान सफेद होने चाहिए।
मैं बतना चाहुंगी कि रीति रिवाज या संस्कार एक अलग चीज़ है जो पीर और साधुओं का बना हुआ है, इसमें धार्मिक महत्व नहीं हो सकता, न ही धर्म से कोई संबंध है। आज रीति रिवाज यानी संस्कार को हम परिपूर्ण धर्म स्वीकार कर चुके, जिसके कारण हम धर्मग्रंथ को भुल गये। आज राम विषय में रामकथा को कोई अपमान करे तो कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर संस्कार के बारे में को एक लफ्ज बोले तो बर्दाश्त नहीं होता।
वैसे मुसलमान को नबी के बारे कटु भषा सुनने के लिये तैयार है मगर पीर बाबा के लिए नहीं। आज हमारे समाज में एक अंधविश्वासी धर्म को अपना लिया, जो सिर्फ और सिर्फ रीति रिवाजों यानी संस्कारों बनी है न के धर्मग्रंथ से, हमें उन पाखंड धर्म गुरु से बचाने के लिए अपने अपने धर्मग्रंथ का अध्ययन करना जरुरी है।
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